लॉकडाउन से आर्थिक नुकसान, पर सबसे कीमती है भारतीयों की जान: मोदी

नई दिल्ली
कोरोना वायरस महासंकट को देखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश में लॉकडाउन को एक बार फिर बढ़ाने का ऐलान किया है. अब देश में 3 मई तक लॉकडाउन रहेगा, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि 3 मई तक लोगों को लॉकडाउन का पालन करना होगा और अनुशासन में रहना होगा. इसी के साथ प्रधानमंत्री ने कहा कि हमें आर्थिक मोर्चे पर चुनौती मिली हैं, लेकिन देशवासियों की जान ज्यादा कीमती है. बता दें कि लॉकडाउन की वजह से देश में सब कारोबार ठप पड़ा है, जिसका सबसे अधिक असर मजदूरों पर पड़ा है.
राष्ट्र के नाम संबोधन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि सोशल डिस्टेंसिंग और लॉकडाउन का बहुत बड़ा लाभ देश को मिला है, अगर सिर्फ आर्थिक दृष्टि से देखें तो बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ी है. लेकिन लोगों की जिंदगी के आगे इसकी तुलना नहीं हो सकती.
गौरतलब है कि विशेषज्ञों और अर्थशास्त्रियों का कहना है कि इतने लंबे समय तक देश में लॉकडाउन लागू होने की वजह से अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर सबसे बड़ी चुनौती मिलेगी. और अगले कुछ समय में जीडीपी-कारोबार पर इसका असर देखने को मिल सकता है.
पीएम मोदी ने अपने संबोधन में कहा कि आज पूरे विश्व में कोरोना वायरस महामारी की स्थिति को सब जानते हैं, अन्य देशों के मुकाबले भारत ने कैसे संक्रमण को रोकने के प्रयास किए, आप इसके सहभागी-साक्षी रहे हैं. जब देश में कोरोना का एक भी केस नहीं था, उससे पहले ही कोरोना प्रभावित देशों से आ रहे लोगों की स्क्रीनिंग शुरू की.
प्रधानमंत्री ने जानकारी दी कि जब केस 100 तक पहुंचे, तब विदेशी लोगों को आइसोलेशन में भेजा जा रहा था. जब देश में 550 केस थे, तब 21 दिनों के लॉकडाउन का फैसला लिया था, भारत ने समस्या बढ़ने का इंतजार नहीं किया.
गौरतलब है कि लॉकडाउन की वजह से देश को आर्थिक मोर्चे पर तगड़ी चोट लगी है. जिसका सबसे ज्यादा अधिक खामियाजा दिहाड़ी मजदूर, किसानों और उद्योगों को उठाना पड़ा है. पिछले कुछ दिनों में कई सेक्टर की ओर से अपील की गई थी कि आर्थिक गतिविधियों को छूट दी जाए, लेकिन सरकार पूरे स्तर पर लॉकडाउन खोलने को सही नहीं माना.
बता दें कि देश में जब सबसे पहले लॉकडाउन का ऐलान किया गया था तब बड़ी संख्या में प्रवासी मजदूर अपने घर की ओर जाने के लिए सड़कों पर निकल पड़े थे. क्योंकि लॉकडाउन की वजह से अधिकतर फैक्ट्रियां-कारोबार बंद हो गए थे, ऐसे में मजदूरों के सामने सबसे बड़ा संकट नौकरी-खाने और रहने का था.