दिल्ली: नोएडा में नील गायों का बुरा हाल, कंक्रीट के जंगल ने छीन लिया आशियाना

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नोएडा
लालच बुरी बला है। इसमें सिर्फ अपना फायदा दिखता है। इससे दूसरों को कितना नुकसान होगा, इसके बारे में नहीं सोचा जाता। यमुना डूब क्षेत्र में फार्म हाउस बनाने वाले भी ऐसे ही लालची लोग हैं। इन्होंने न तो प्रकृति की चिंता की, न ही जमीन और खेतों के भरोसे रहने वाली हजारों नीलगायों की। यमुना के डूब क्षेत्र में लगातार कंक्रीट के जंगल के रूप में फैलते फार्म हाउस की संख्या करीब दो हजार से अधिक हो चुकी है। ऐसे में डूब क्षेत्र की खेती की यह जमीन कंक्रीट के जंगल में तब्दील होने लगी है। वहीं इससे वर्षा जल संचयन की संभावना भी काफी कम हो गई है। हजारों नीलगाय का आश्रय अब खत्म हो चुका है। इससे नीलगाय यमुना के पार हरियाणा की सीमा और गौतमबुद्ध नगर से आगे निकलते हुए मथुरा, अलीगढ़ की तरफ चली गई हैं।

खेत बचे, न खेती: यमुना के डूब क्षेत्र में हजारों की संख्या में बनाए गए फार्म हाउसों के चलते यहां अब खेती के लिए कुछ ही खेत बचे हैं। अधिकांश जमीन पर कंक्रीट की दीवारें, कमरे और पक्के रास्तों के कारण खेती की जमीन पूरी तरह से कंकरीट में तब्दील हो गई है। जहां खेती हो भी रही है, वहां उपज अब उतनी बेहतर नहीं रह गई है। खेतों में काम करने वाले लोग भी बेरोजगार होने के कारण यहां से पलायन कर चुके हैं।
नीलगाय हुई लुप्त: डूब क्षेत्र में इन फार्म हाउस के निर्माण से पहले पुश्ते और यमुना के बीच में हजारों की संख्या में नीलगाय रहती थी। यह फसल को थोड़ा-बहुत नुकसान तो पहुंचाती थी, लेकिन प्राकृतिक रूप से यह इनका आश्रय होता था।

वर्षा जल संचयन कम
हजारों एकड़ में फैले इन फार्म हाउस में पक्की दीवार, दर्जनों कमरे, कैंटीन, बैठने की जगह, टाइल्स, पक्का रास्ता, स्वीमिंग पूल और बाहर पक्की सड़क का निर्माण होने से कच्ची जमीन कम बची है। इससे प्राकृतिक रूप से वर्षा के समय जल संरक्षण करने वाला डूब क्षेत्र अब जल संचयन के मामले में पीछे हटता जा रहा है। इसके इतर स्वीमिंग पूल भरने के लिए प्रतिदिन हजारों लीटर पानी का दोहन किया जाता है, तो उसे फिर निकालकर नालियों में बहा दिया जाता है। इससे भूजल संरक्षण करने के बजाय भूजल का दोहन अधिक हो रहा है।

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