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 मद्रास हाई कोर्ट का बड़ा फैसला, तलाक के लिए कोर्ट अदालत जाएं मुस्लिम महिलाएं, शरीयत काउंसिल का सर्टिफिकेट मान्य नहीं

 चेन्नई 
मद्रास हाई कोर्ट ने एक मामले में बड़ा फैसला सुनाते हुए कहा है कि शरीयत काउंसिल (खुला) कोई अदालत नहीं है इसलिए महिलाओं को तलाक लेने के लिए अदालत जाना जरूरी है। हाई कोर्ट ने कहा कि जो महिलाएं कानूनी तौर पर तलाक लेना चाहती हैं उन्हें फैमिली कोर्ट का दरवाजा खटखटाना चाहिए। खुल सर्टिफिकेट को खारिज करते हुए जस्टिस सी सरवनन ने कहा, 'मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) ऐप्लिकेशन ऐक्ट के तहत महिला को इस बात की स्वतंत्रता है कि महिला 'खुला' के जरिए शादी भंग करवा सकती हैं लेकिन यह केवल पारिवारिक स्तर पर मान्य है। कानूनी तौर पर तलाक लेने के लिए कोर्ट जाना जरूरी है।'

जस्टिस सर्वनन ने कहा, पारंपरिक कानून के तहत चलने वाले संस्थानों द्वारा दिए जाने वाले सर्टिफिकेट कानूनी तौर पर वैध नहीं हैं। जमात के कुछ सदस्यों को शामिल करके कोई स्वघोषित निकाय इस तरह के सर्टिफिकेट नहीं जारी कर सकती। याचिका में पति ने तर्क दिया था कि फतवा या फिर खुला जैसे सर्टिफिकेट किसी पर कानून दबाव नहीं बना सकते हैं। वहीं स्थानीय शरीयत काऊंसिल ने उसका विरोध किया था और कहा था कि इसी तरह के मामले में केरल हाई कोर्ट ने कहा था कि  शरीयत काउंसिल अपना काम कर सकती है। 

जस्टिस सर्वनन ने शरीयत काउंसिल के तर्क को खारिज करते हुए कहा कि केरल हाई कोर्ट ने खुला के जरिए महिला की ओर से दीए जाने वाले तलाक को बरकरार रखा था लेकिन शरीयत काउंसिल जैसी किसी संस्था के दखल को नहीं स्वीकार किया था। 

हाई कोर्ट ने कहा कि फैमिली कोर्ट ऐक्ट की धारा 7 (1) (बी), मुस्लिम मैरिज डिसॉल्यूशन ऐक्ट और मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत केवल फैमिली कोर्ट को ही शादी को खत्म करने का अधिकार है। कोई भी निजी निकाय जैसे कि शरीयत काउंसिल 'खुला' के द्वारा तलाक प्रमाणपत्र नहीं जारी किया जा सकता है। बता दें कि यह तलाक प्रमाणपत्र 2017 में शरीयत काउंसिल ने जारी किया था। 

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