अग्निपरीक्षा में सफल हुई ईडी, कोर्ट ने भी नियुक्ति को सही माना, ईडी ने कहा- सत्य की जीत, सहयोगियों को दिया धन्यवाद

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भोपाल
ईडी की नियुक्ति को चुनौती देने वाली याचिका क्रमांक 29833/2023 पर मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने अपना महत्वपूर्ण फैसला सुना दिया है। न्यायालय ने न केवल सेडमैप की कार्यकारी संचालक श्रीमती अनुराधा सिंघई की नियुक्ति को सही माना है, बल्कि उनके विरूद्ध लगाए गए सभी आरोपों को भी झूठा बताया है। कार्यकारी संचालक श्रीमती अनुराधा सिंधई की नियुक्ति उद्यमिता विकास केंद्र मध्यप्रदेश (सेडमैप) में 27 जुलाई 2021 को की गई थी। उनके कार्यभार संभालने से पहले ही नियुक्ति प्रक्रिया और उनकी योग्यता पर सवाल उठाए जाने लगे थे। अब कोर्ट का बहुप्रतीक्षित निर्णय आने के बाद यह साबित हो गया कि सभी आरोप झूठे और निराधार थे, जिससे विरोधियों को कोर्ट में पराजय का सामना करना पड़ा। न्यायालय के निर्णय के सम्मान में सेडमैप में खुशी मनाई गई। निर्णय आते ही ईडी श्रीमती अनुराधा सिंघई को सभी ओर से बधाइयां मिलना शुरू हो गईं।
बता दें कि सेडमैप की कार्यकारी संचालक श्रीमती अनुराधा सिंघई की नियुक्ति के खिलाफ न केवल पुलिस थाना में झूठी और फर्जी शिकायत दर्ज कराई गई थी, बल्कि उन्हें परेशान करने के लिए न्यायालय में भी याचिका दायर की गई थी कि वह ईडी पद के लिए योग्य नहीं हैं और इस पद पर उनकी नियुक्ति में अनियमितताएं हुई हैं, लेकिन हाईकोर्ट का फैसला आने के बाद अब सब कुछ स्पष्ट हो गया है, साथ ही विरोधियों के झूठ का भी पर्दाफाश हो गया है।
दरअसल, भ्रष्टाचार के विरूद्ध ‘‘जीरो टॉलरेंस’’ की नीति पर अडिग कार्यकारी संचालक श्रीमती अनुराधा सिंघई को पद से हटाने के लिए पिछले तीन वर्षाें से कतिपय तत्वों द्वारा हर तरह के हथकंडे अपनाए जा रहे थे। भ्रष्टाचार के मंसूबे पूरे न होते देख कुछ लोगों ने कार्यकारी संचालक की नियुक्ति को ही चुनौती दे डाली। बिना जांच पड़ताल किए एक के बाद एक प्रकरण दर्ज होने के बाद भी कार्यकारी संचालक श्रीमती अनुराधा सिंघई ने सबका डटकर मुकाबला किया, और जैसे-जैसे प्रकरण आगे बढ़ता गया, सभी को वास्तविकता का आभास होने लगा। ईडी के पक्ष में धीरे-धीरे लोग सामने आने लगे। कार्यकारी संचालक ने नियुक्ति सम्बंधी जो तथ्य प्रस्तुत किए, उनके सामने, विरोध में मुखर लोगों को हार मानने, के लिए विवश होना पड़ा।
हालांकि इस मामले की बहस पिछले माह ही पूरी हो गई थी, परंतु कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया था। फैसला सुनने के बाद जहां सेडमैप के कर्मचारियों के चेहरे खिल उठे वहीं उद्यमिता भवन में खुशियां मनाई गईं। कार्यकारी संचालक ने कहा कि अदालत ने किसी भी धारा में उन्हें दोषी नहीं पाया। उन्हें न्याय प्रणाली पर पूरा भरोसा था। नियुक्ति सम्बंधी मामले में बीते तीन वर्षों से घिरीं कार्यकारी संचालक श्रीमती अनुराधा सिंधई ने गर्व से न्यायालय के फैसले का सम्मान किया। कर्मचारियों के बीच जीत की घोषणा करते ही उद्यमिता भवन में हर्ष की लहर दौड़ गई। उल्लेखनीय है कि इससे पूर्व संस्था के एक भ्रष्ट समूह ने षड़यंतपूर्वक ईडी को पद से हटाने के इरादे से पुलिस थाने में भी एफ.आई.आर. दर्ज कराई थी, जिसमें गहन जांच-पड़ताल के बाद यह पाया गया कि ईडी सही हैं और भोपाल जिला और सत्र न्यायालय ने गहन जांच और विचार-विमर्श के बाद, कार्यकारी संचालक के खिलाफ लगाए गए सभी आरोपों को झूठा करार दिया व एफ.आई.आर. खारिज कर दी गई।
बताना चाहेंगे कि इससे पूर्व में हो चुकी विभागीय जांच में भी विभागीय अधिकारियों द्वारा श्रीमती अनुराधा सिंघई की नियुक्ति को सही ठहराया गया। अब हाईकोर्ट के निर्णय उपरांत उस पर मोहर लग गई है।
हालांकि तीन साल तक कार्यकारी संचालक को कई आरोपों का सामना करना पड़ा, जिससे उनकी कार्यप्रणाली, उनकी उपलब्धियां और वित्तीय स्थिति के लिए उनकी प्रतिष्ठा पर आंच आने का खतरा मंडराने लगा था। कार्यकारी संचालक श्रीमती अनुराधा सिंघई ने फैसले के बाद सभी के प्रति आभार व्यक्त किया और राहत व्यक्त की। उन्होंने कहा कि न्यायालय का निर्णय एक कानूनी जीत से कहीं अधिक है। यह पारदर्शिता, नैतिक आचरण और भ्रष्टाचार के विरूद्ध छेड़ी गई मुहिम के प्रति अटूट आस्था का प्रतीक है। कानूनी विशेषज्ञों की एक प्रतिष्ठित टीम द्वारा हर प्रकार से मुकाबला किया गया और पूरी लगन से बहस की गई। एक अनुचित जांच का सामना करते हुए ईडी की प्रतिष्ठा पर गहरा असर पड़ा, परंतु चुनौतियों के बावजूद, उन्होंने अपनी बेगुनाही बरकरार रखी और कानूनी कार्यवाही में लगातार सहयोग किया।
 आरोपों के झूठा साबित होने पर अपनी प्रतिक्रिया में कार्यकारी संचालक श्रीमती अनुराधा सिंघई ने कहा कि आज उन्हें फिर से विश्वास हो गया कि ईश्वर के घर में देर है, अंधेर नहीं। उन्होंने कहा कि वे शुरू से स्वयं को निर्दाेष बता रहीं थीं। लेकिन किसी ने उनकी बात नहीं सुनी। आखिर सच की जीत हुई। न्यायालय का निर्णय आने के पश्चात कार्यकारी संचालक श्रीमती अनुराधा सिंघई ने अपने अधिवक्ताओं, परिवार, मित्रों, और प्रशंसकों के समर्थन के लिए, सभी की शुभकामनाओं के लिए उन्हें धन्यवाद दिया, जो इस कठिन समय के दौरान उनके समर्थन में अटूट रहे तथा जिनकी वजह से उन्हें साहस और संबल मिला और वे कठिनाइयों से जूझ सकीं, जिन्होंने पूरी प्रक्रिया में मार्गदर्शन प्रदान किया। उन सभी के प्रति उन्होंने धन्यवाद ज्ञापित किया।

अनुराधा को ऐसे किया प्रताड़ित…!
संस्था में बाहरी एजेंसियों से मिला हुआ, कुछ कर्मचारियों का एक ऐसा अंदरूनी समूह (सिंडिकेट) था, जो वित्तीय अनियमितता में लिप्त था और संस्था के हितों से ऊपर अपने हितों को रखता था।
इस षडयंत्रकारी समूह ने ही कार्यकारी संचालक के कार्यभार संभालने से पूर्व ही दो प्रकरण दर्ज करा रखे थे, जिन्हें बाद में वापस ले लिया गया।
उसके बाद शुरू हुआ अनगिनत आर.टी.आई. (सूचना का अधिकार) लगाने और सी.एम. हेल्पलाइन में झूठी शिकायतों का सिलसिला
दुर्भावनापूर्ण इरादे और बुरी नियत से भद्दे, अशोभनीय पत्र लिखे गए
छवि धूमिल करने के इरादे से कई तरह की अफवाहें फैलाई गईं, कर्मचारियों को उनके विरूद्ध कार्य करने के लिए बरगलाया गया।
योग्यता और नियुक्ति को लेकर जनहित याचिका (पी.आई.एल.) क्रमांक 11889/2022 लगाई गई, जिसे माननीय उच्च न्यायालय ने दिनांक 23 मई 2022 को खारिज कर दिया और नियुक्ति को सही ठहराया।
कूटरचित, मिथ्या और भ्रामक दस्तावेज तैयार कर षडयंत्रपूर्वक आपराधिक प्रकरण दर्ज कराया गया, जो पुलिस जांच में झूठे पाए गए और न्यायालय ने भी पुष्टि करते हुए उन्हें खारिज कर दिया।
षडयंत्रकारी यहीं नहीं रूके, छवि धूमिल करने के लिए कतिपय तत्वों द्वारा गुमनाम, फर्जी और झूठी शिकायतें, अलग-अलग नामों से विभिन्न फोरम पर की जाती रहीं।
संस्था में कार्यरत कर्मचारियों के अतिरिक्त नवनियुक्त कर्मचारियों को ईडी के खिलाफ़ भड़काकर कार्य बाधित किया गया।
कोर्ट में अपील खारिज हो जाने से हताश लोगों ने मनगढ़ंता तरीके से मिथ्या, भ्रामक और काल्पनिक चैट बनाकर वायरल किया और चरित्र हनन का प्रयास किया। आपको बता दें कि क्राइम ब्रांच द्वारा जांच में साबित हो गया कि मनगढ़ंत और झूठी चैट बनाने के पीछे एक निष्कासित एजेंसी रतन एम्पोरियम का प्रबंधक रमनवीर अरोरा था। उसके विरूद्ध कोर्ट में चालान भी पेश हो गया है।
अपने मंसूबों में कामयाबी मिलते न देख और कोर्ट में अपील खारिज होने से हताश भ्रष्ट समूह की शह पर कई दफा ईडी की रैकी और पीछा करते हुए लोगों से भी जान का खतरा पाया गया, जिसकी शिकायत पुलिस कमिश्नर कार्यालय में की गई।
उक्त समूह द्वारा दहशत फैलाने का मकसद ईडी को मरवाने की कोशिश भी हो सकता है।
मीडिया को भी गुमराह करने की कोशिशें की गईं, झूठी, भ्रामक और मनगढ़ंता जानकारी देकर ईडी की छवि धूमिल करने और चरित्र हनन की साजिशें की गईं।
योग्यता पर प्रश्नचिन्ह कैसे…?*
एक स्वशासी संस्था जो वर्ष 2021 में बंद की कगार पर थी और निरंतर कई वर्षों से घाटे में जा रही थी, उसे अपनी कार्यकुशलता से सफलतापूर्वक संचालित कर दिखाया। उन्होंने आर्थिक संकट की स्थिति में ईडी का कार्यभार संभालते हुए मात्र चार माह में 14 माह का (बीते 10 माह सहित) वेतन देकर संस्था को घाटे से उबार दिया।
ईडी के कार्यभार से पूर्व संस्था की हालत यह थी कि कर्मचारियों को 10 माह से वेतन नहीं मिल पा रहा था, जो कि उनके ज्वाइन करने के चार माह के भीतर ही 14 माह का वेतन प्रदान कर दिया गया और तब से अब तक कर्मचारियों को नियमित वेतन प्राप्त हो रहा है।
संस्था के क्षेत्रीय समन्वयकों की वित्तीय अनियमितता और दुराचार के कारण संविदा कर्मचारी और जिला समन्वयक काफी प्रताड़ित हो रहे थे, उनकी मुश्किलों को क्षेत्रीय समन्वयक का पद समाप्त करते हुए, दूर किया गया।
संस्था अपने अस्तित्व से लड़ रही थी और बेहद खराब छवि से गुजर रही थी, तब उन्होंने छवि निखारने के लिए सभी आवश्यक कदम उठाए और संस्था के प्रति विश्वास का वातावरण निर्मित करते हुए पहचान दिलाने का कार्य किया।
संस्था में गुणवत्ता पर ध्यान दिया गया। मैनपावर प्रभाग में चल रही विसंगतियों को दूर करते हुए सेडमैप को बतौर मॉनीटरिंग एजेंसी और फेसिलिटेटर के रूप में उभारा, जिसके परिणामस्वरूप मध्यप्रदेश भंडार क्रय नियम के अन्तर्गत प्रशिक्षण एवं आउटसोर्स सेवाओं के लिए संस्था को नामांकित किया गया।
संस्था के लक्ष्यों की प्रतिपूर्ति के लिए एक ब्लूपिं्रट तैयार किया गया, जिसके माध्यम से मध्यप्रदेश मंे कोई बेरोजगार न रहे, इस हेतु सभी को रोजगार-स्वरोजगार और आजीविका से जोड़ने का बीड़ा उठाया गया।
और भी कई ऐसे प्रेरक कार्य हैं जो शासन की मंशा के अनुरूप किये जा रहे हैं और उनके सुखद परिणाम भी आ रहे हैं।
क्या इसे कहेंगे अयोग्य होना?
जो कार्यभार संभालने के उपरांत महज 4-5 माह में ही संस्था को घाटे से उबार देता है।
जो गुणवत्ता पर ध्यान देते हुए संस्था को उत्तरोत्तर प्रगति की ओर अग्रसर करता है।
जो जीरो टॉलरेंस की नीति अपनाते हुए भ्रष्टाचार के विरूद्ध कठोर कदम उठाता है।
जो संस्था के उद्देश्यों के अनुरूप रोजगार-स्वरोजगार और आजीविका संवर्धन के लिए नए-नए प्रयोग करता है।
जिन्हें कॉर्पाेरेट सामाजिक उत्तरदायित्व, क्लस्टर विकास, व्यवसाय मॉडलिंग, उद्यमिता, प्रशिक्षण, आजीविका, अनुसंधान और अध्ययन, कॉर्पाेरेट समाधान, अंतर्राष्ट्रीय व्यापार और सरकारी सलाह सहित विकास और कॉर्पाेरेट क्षेत्र में 21 वर्षों से अधिक का अनुभव है।
जो बहुमुखी प्रतिभा की धनी हैं और बिजनेस वुमेन ऑफ द ईयर सहित कई सामाजिक, सांस्कृतिक एवं शैक्षणिक संस्थाओं द्वारा पुरस्कृत हैं।
जो फैलो कंपनी सेक्रटरी की उपाधि से विभूषित हैं और वेद, वेदांग एवं उपनिषद में गहन अध्ययन के लिए सम्मानित हैं।
जो आजीविका संवर्द्धन के लिए किए जा रहे प्रयासों के लिए विदेशों में तीन बार भारत का प्रतिनिधित्व कर चुकी हैं।
जिन्होंने अपनी कार्यकुशलता और दूरदर्शिता से संस्था का कायापलट किया है।
 फैसले के बाद विधि विशेषज्ञों की राय
न्यायालय के फैसले पर सेडमैप के विधिक सलाहकार एडिशनल एडवोकेट जनरल श्री भरत सिंह और वरिष्ठ हाईकोर्ट एडवोकेट श्री पंकज दुबे ने प्रसन्नता प्रकट की। कार्यकारी संचालक श्रीमती अनुराधा सिंघई के पक्ष में न्यायालय का निर्णय आने के उपरांत खुशी जताते हुए एडिशनल एडवोकेट जनरल श्री भरत सिंह ने कहा कि ईडी वाकई बहुत साहसी और जुझारू हैं, जिन्होंने अकेले इस विषम परिस्थिति का सामना किया और बुराई को जड़ से हटाया। यदि देश में ऐसे और लोग हों तो प्रदेश का कायापलट करने से कोई नहीं रोक सकता। उन्होंने शासन की राजस्व चोरी को रोका है। उन्हें सम्मानित किया जाना चाहिए।
वरिष्ठ हाईकोर्ट एडवोकेट श्री पंकज दुबे का भी कहना है कि ईडी की नियुक्ति को कोर्ट ने पूरी तरह से सही ठहराया है। कोर्ट ने माना कि ईडी की नियुक्ति पूरी तरह से सही है और सक्षम प्राधिकारी द्वारा उनकी नियुक्ति को सही ठहराया गया है वह काफी योग्य हैं। इसलिए सभी आरोप झूठे और बेबुनियाद साबित हुए।
शिकायतकर्ता मनोज शर्मा निष्कासित अकाउंटेंट है जो कि वित्तीय अनियमितता में भ्रष्ट समूह में शामिल था। इसके लिए उसके द्वारा दुर्भावनापूर्ण तरीके से फर्जी और झूठी शिकायत की गई। माननीय कोर्ट ने उसे बुरी तरह फटकार लगाई है।
विभागीय जांच के विरूद्ध आर.डी. मांडवकर जब हाईकोर्ट में स्टे लेने गया तो माननीय हाईकोर्ट जज ने स्टे की पिटीशन को खारिज करते हुए आर.डी. मांडवकर को भी फटकार लगाई थी। ईडी ने विभागीय जांच शुरू की तो उसने बदला लेने के लिए ईडी के विरूद्ध झूठी एफ.आई.आर. दर्ज कराई।
माननीय न्यायालय का निर्णय भ्रष्ट समूह में शामिल मनोज शर्मा, शरद कुमार मिश्रा, आर.डी. मांडवकर और रमनवीर अरोरा समेत समस्त अंदरूनी कर्मचारी और बाहरी उनके सहयोगी साजिश में जुटे अन्य लोगों के लिए एक बड़ा सबक है। किसी ने सच ही कहा है कि सत्य परेशान हो सकता है, परंतु पराजित नहीं….!!

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