मध्य प्रदेश: हाई कोर्ट का आदेश सिर्फ पूर्व आपराधिक रिकार्ड के आधार पर जमानत से वंचित नहीं कर सकते

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जबलपुर
मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने अपने एक आदेश में साफ किया महज पूर्व आपराधिक रिकार्ड के आधार पर किसी को जमानत के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता। लिहाजा, आवेदक को जमानत पर रिहा करने का आदेश पारित किया जाता है। बहस के दौरान ऐसे कई तथ्य रेखांकित किए गए, जिनसे आवेदक की बेगुनाही को बल मिला। उन्होंने दलील दी कि आवेदक को जमानत दी जानी चाहिए। मामले की सुनवाई के दौरान अपीलकर्ता अनूपपुर के राजेंद्र ग्राम थाना अंतर्गत ग्राम पपिरहा निवासी बनवारी लाल गुप्ता उर्फ पिंटू की ओर से अधिवक्ता संदीप जैन ने पक्ष रखा। इस सिलसिले में शासकीय अधिवक्ता की आपत्ति दरकिनार किए जाने योग्य है कि पूर्व आपराधिक रिकार्ड को गंभीरता से लेकर जमानत अर्जी निरस्त कर दी जाए।

वहीं, पुलिस की रिपोर्ट के आधार पर आवेदक पर आरोप है कि उसने अपनी पत्नी के प्रेम संबंध के संदेह के आधार पर प्रेमी को मौत के घाट उतार दिया। मालूम हो कि आवेदक पर हत्या का आरोप है। दरअसल वह व्यापार के सिलसिले में अक्सर ओड़िशा जाता था। उसे लौटने के बाद गांव वाले उसे यह जानकारी दिया करते थे कि उसके पीछे राजकुमार नामक युवक घर आता-जाता। जिस कारण उसके दिमाग में ये शक घर कर गया था। शक के कारण उसने कई बार राजकुमार को समझाया भी कि वह उसकी गैर हाजिरी में उसके घर न आया- जाया करे। लेकिन राजकुमार इस बात को नहीं माना। लिहाजा, एक रोज उसने अपने मित्र अर्जुन सिंह के जरिये राजकुमार को जंगल में बुलवाया। वहां कहा-सुनी होने के दौरान लाठी चलने से राजकुमार बुरी तरह घायल हो गया। पर इस चोट में अधिक खून निकलने से उसकी मौत हो गई।

अधिवक्ता संदीप जैन ने तर्क दिया कि यह मामला पुलिस द्वारा असली आरोपित के पकड़ में न आने के कारण बेगुनाह को फंसाने से संबंधित है। बहस के दौरान ऐसे कई तथ्य रेखांकित किए गए, जिनसे आवेदक की बेगुनाही को बल मिला। सुप्रीम कोर्ट व हाई कोर्ट के पूर्व न्यायदृष्टांत कोट किए गए, जिनमें जमानत दिए जाने का बिंदु भी रेखांकित किया गया है। अभियोजन की ओर से किसी जमानत आवेदन को बार-बार आपित्त के जरिये कठघरे में रखने को अनुचित करार दिया गया। हाई कोर्ट भी इस तर्क से सहमत हुआ।

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