2010 में हुई थी घोषणा व स्वीकृत हुई थी राशि, 12 साल में भी नहीं बन पाई कैंटीन

Spread the love

कटनी
केंद्र सरकार ने शिक्षा व्यवस्था सुधारने के लिए नई शिक्षा नीति लागू की है। स्कूलों, कॉलेजों की दिशा-दशा सुधारी जा रही हैं, लेकिन कटनी शहर का अग्रणी तिलक कॉलेज अव्यवस्थाओं से घिरा हुआ है। आपको जानकर हैरानी होगी कि 2010 में तत्कालीन विधायक गिरिराज किशोर पोद्दार ने तिलक कॉलेज में कैंटीन निर्माण की घोषणा की। 5 लाख रुपये की राशि जारी की गई।

राशि कम पडऩे पर फिर से राशि दी गई, लगभग तीन बार में 8 लाख रुपये से अधिक की राशि कैंटीन के लिए दी गई। 2008 से 2013 तक विधायकी का कार्यकाल रहा। निर्माण एजेंसी ग्रामीण यांत्रिकी सेवा विभाग को बनाया गया था। समय रहते विभाग ने कैंटीन का काम पूरा नहीं किया। 2013 से 2018 तक बड़वारा विधायक रहे मोती कश्यप ने विधानसभा में प्रश्न भी उठाया, लेकिन इसके बाद भी कैंटीन को चालू करने ध्यान नहीं दिया गया। विद्यार्थियों को कॉलेज में कैंटीन की सुविधा मिले, इसके लिए फिर किसी जनप्रतिनिधि ने ध्यान नहीं दिया।

जिम्मेदारों की उदासीनता
जिम्मेदारों की उदासीनता का ही यह नजारा है कि 12 साल से अधिक समय से बनाए जा रहे कैंटीन में किसी तरह से छत तो पड़ गई है, लेकिन चालू नहीं हो पाई। छात्र व कर्मचारियों को चाय नस्ते के लिए बाहर जाना पड़े, इसके लिए जिले के लीड कॉलेज होने के कारण परिसर में एक कैंटीन हो, इसके लिए पहल हुई। जितने पर आरइएस ने रुपयों की कमी बताई राशि मिली, इसके बाद भी कैंटीन शुरू न होना जिम्मेदारों की उदासीनता का उदाहरण है। अब स्थिति यह है कि कैंटीन की दीवारों में दरारें आना शुरू हो गईं और व खुलने से पहले ही खंडहर में तब्दील होती दिख रही है।

ठेले-टपरों में फटकते हैं विद्यार्थी
कॉलेज में कई विद्यार्थी कई किलोमीटर गांव-देहात से पहुंचते हैं। जल्दबाजी में कई बार टिफिन नहीं ला पाते या फिर लाने की व्यवस्था नहीं होती। शहर के विद्यार्थी भी नास्ते के लिए परेशान होते हैं। भूख लगने पर तिलक कॉलेज के बाहर लगने वाले ठेले-टपरों में चाय-समासो व अन्य खाद्य सामग्री से काम चलाते हैं। कैंटीन की स्वीकृति के बाद भी इसे चालू नहीं कराया गया।

अफसरों व जनप्रतिनिधियों को नहीं कोई सरोकार
कॉलेज में ही बच्चों को कैंटीन की सुविधा मिले इसको लेकर जनप्रतिनिधयों की बड़ी बेपरवाही सामने आई है। एक छोटी सी कैंटीन बनने में 12 साल से अधिक का वक्त लगना अपने आप में एक विफलता की कहानी है। राजनीतिक रोटियां सेंकने वाले जनप्रतिनिध सिर्फ वोट बैंक की राजनीति कर रहे हैं, विद्यार्थियों की समस्या से तनिक भी सरोकार नहीं है। छात्र विकास दुबे ने कहा कि यदि नेता चाहते तो अबतक कबसे कैंटीन बन गई होती। वहीं जिला के कलेक्टर को भी कोई लेना-देना नहीं है। हर सोमवार को योजनाओं की समीक्षा होती थी, जिस पर भी सवाल खड़े होने लगे हैं।

इनका कहना
अभी आचार संहिता लगी हुई है तो काम होना मुश्किल है। आचार संहिता खत्म होने के बाद कॉलेज की कैंटीन में बचे काम को पूरा कराते हुए चालू कराने पहल की जाएगी। कैंटीन का काम ग्रामीण यांत्रिकी सेवा विभाग से हो रहा है। समय पर काम पूरा हो, इसके लिए कई बार पत्रचार संबंधित विभाग व उच्च शिक्षा विभाग को किया गया है।
डॉ. एसके खरे, प्राचार्य तिलक कॉलेज।

Related Articles

Back to top button