मेलानिया ने बताया सच: कैसे पुतिन से होती है उनकी निजी बातचीत?

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वाशिंगटन
 अमेरिकी फर्स्ट लेडी मेलानिया ट्रंप ने सनसनीखेज खुलासा किया है. मेलानिया ने बताया कि उन्होंने रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ ‘open channel of communication’ रखा हुआ है. इस डायरेक्ट बातचीत का मकसद है, यूक्रेन युद्ध में बिछड़े बच्चों को उनके परिवारों से मिलवाना. शुक्रवार को मेलानिया ने कहा कि पुतिन ने उनके लेटर का जवाब दिया है और बताया कि रूस ने कुछ यूक्रेनी बच्चों को उनके परिवारों के पास वापस भेज दिया है. मेलानिया के मुताबिक, ‘पिछले 24 घंटों में आठ बच्चों को उनके परिवारों से फिर मिलाया गया है.’ उन्होंने कहा, ‘हर बच्चा उसी प्यार और सुरक्षा का सपना देखता है जो किसी भी इंसान का हक होता है. इन बच्चों ने जंग की वजह से वो सब खो दिया जो उनके बचपन का हिस्सा था.’

19,000 से ज्यादा बच्चे अब भी लापता

यूक्रेनी सरकार के मुताबिक, फरवरी 2022 में जंग शुरू होने के बाद से अब तक करीब 19,500 बच्चे रूस या उसके कब्जे वाले इलाकों में जबरन ले जाए गए हैं. ये बच्चे अपने परिवारों से बिछड़ चुके हैं. मेलानिया ने बताया कि हाल ही में लौटे आठ बच्चों में तीन ऐसे थे जो फ्रंटलाइन लड़ाई के बीच अपने परिवार से अलग हो गए थे. उन्होंने कहा, ‘हर बच्चे की कहानी दर्द से भरी है, लेकिन अब उन्हें उनके परिवारों की गोद मिली है.’

मेलानिया की चिट्ठी पर पुतिन का जवाब

खबर के मुताबिक, अगस्त में अलास्का में हुई ट्रंप-पुतिन मुलाकात के दौरान राष्ट्रपति ट्रंप ने मेलानिया की चिट्ठी पुतिन को खुद सौंप दी थी. उस वक्त मेलानिया अलास्का ट्रिप पर मौजूद नहीं थीं. मेलानिया ने अपनी चिट्ठी में लिखा था, ‘हर बच्चा अपने दिल में एक शांत सपना रखता है – प्यार, उम्मीद और डर से आजादी का सपना.’ उन्होंने पुतिन से अपील की थी कि रूस के कब्जे में आए यूक्रेनी बच्चों को उनके परिवारों से मिलवाया जाए.

पुतिन ने इस चिट्ठी का जवाब दिया और मेलानिया को एक विस्तृत रिपोर्ट भेजी जिसमें बच्चों की पहचान, स्थिति और पुनर्मिलन की पूरी जानकारी थी. मेलानिया ने कहा, ‘अमेरिकी सरकार ने इन तथ्यों की पुष्टि की है.

अमेरिका-रूस रिश्तों के बीच ‘मेलानिया चैनल’

रूस और अमेरिका के बीच बढ़ते तनाव के बीच यह ‘मेलानिया चैनल’ एक अनोखा और अप्रत्याशित पुल साबित हो सकता है. व्हाइट हाउस सूत्रों के मुताबिक, मेलानिया की पहल को मानवीय और गैर-राजनीतिक माना गया है, लेकिन यह कदम कूटनीतिक लिहाज से बहुत मायने रखता है. कई विश्लेषक इसे ‘soft diplomacy’ का उदाहरण बता रहे हैं.

 

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