E20 फ्यूल ने खोल दी पॉलिसी की कमजोरियां, जानें कब मिलता है क्लेम और कब नहीं

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नई दिल्ली 
भारत में E20 फ्यूल को बढ़ावा देने की मुहिम अब कार मालिकों और बीमा कंपनियों के लिए नई चुनौती बनती जा रही है। पेट्रोल वाहनों के मेंटेनेंस खर्च पिछले दो महीनों में दोगुना हो गया है। अगस्त में यह खर्च 28% था, जो अक्टूबर में बढ़कर 52% तक पहुंच गया। यह जानकारी लोकलसर्कल्स के एक सर्वे में सामने आई। रिपोर्ट में कहा गया है कि पहले से ही महंगे पेट्रोल दामों से परेशान ग्राहकों पर इन बढ़े हुए खर्चों ने आर्थिक दबाव बढ़ा दिया है।

कार मालिकों की प्रतिक्रिया
सर्वे में कई वाहन मालिकों ने कहा कि अगर E20 फ्यूल को ऑप्शनल रखा जाए और इसकी कीमत 20% कम की जाए, तो वे इसका समर्थन करेंगे। रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि यह भावना पर्यावरण विरोधी नहीं है, बल्कि वाहन मालिकों पर अचानक थोपे गए बदलाव के कारण उत्पन्न हुई है।

बीमा में नई समस्याएं
बीमा विशेषज्ञों का मानना है कि E20 फ्यूल के कारण होने वाले नुकसान अक्सर मोटर इंश्योरेंस पॉलिसी में कवर नहीं होते। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, अगर किसी वाहन को E20 फ्यूल से नुकसान हुआ, तो इसे रासायनिक जंग या मैकेनिकल घिसावट माना जाता है, न कि दुर्घटना। ऐसे मामलों में बीमा कवरेज आमतौर पर लागू नहीं होता। हालांकि, अगर इंजेक्टर खराब होने से इंजन में आग लगती है, तो यह विवाद का मामला बन सकता है।

स्पष्ट पॉलिसी की जरूरत
विशेषज्ञों का कहना है कि बीमा पॉलिसी में बदलाव की आवश्यकता है, ताकि इथेनॉल से जुड़े नुकसान और अपवादों को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया जा सके। ऐसा न होने पर भविष्य में यह विवादों का कारण बन सकता है कि कौन-सा नुकसान बीमा में कवर होगा और कौन-सा नहीं।
 

सरकार का रुख
केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी का कहना है कि E20 फ्यूल पर आ रही शिकायतें गलत जानकारी पर आधारित हैं। सरकार का दावा है कि E20-कंपैटिबल वाहन 2023 से ही उपलब्ध हैं और इथेनॉल कार्यक्रम भारत के स्वच्छ ईंधन, कम आयात, और किसानों की आय बढ़ाने के लक्ष्य को आगे बढ़ाता है। E20 फ्यूल में 20% इथेनॉल और 80% पेट्रोल होता है। इसे अप्रैल 2023 में पायलट प्रोजेक्ट के रूप में कुछ शहरों में शुरू किया गया था, और अब पूरे देश में लागू कर दिया गया है।

 

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